2025 मे रुपए के गिरने से लोगों पर क्या असर पड़ेगा? : दोस्तों हम आपको बता दें की जब भी किसी देश की मुद्रा का मूल्य घटता है तो उसे मुद्रा का क्रेश कहा जाता है। एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए मे तेजी से गिरावट आई है। जिसने आम आदमी और शेयर बाजार को चिंता मे डाल दिया है।13 जनवरी 2025 के दिन 27 पैसे गिरकर 86.31 के रिकार्ड निचले स्थार पर पहुच गया। रुपया 86.12 का खुला डॉलर के मुकावले 86.57 के ऐतिहासिक निचले स्थार पर आ गया यह रुपया मे एक दिन मे आई सबसे बड़ी गिरावट है। इसका सीधा असर देश के नागरिकों और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। आइए इस विषय पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
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रुपये के क्रेश के मुख्य कारण
दोस्तों रुपये के मूल्य में गिरावट के पीछे कई कारण हो सकते हैं जिसे हम विस्तार से देखेंगे की रुपया का मूल्य क्यू गिरता है आइये जानते हैं।
- विदेशी निवेश में कमी: यदि विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकालते हैं, तो रुपये पर दबाव बढ़ता है। जिसके कारण रुपए के मूल्य मे गिरावट आती है।
- वाणिज्य घाटा: जब भारत का आयात विशेषकर तेल और गैस का खर्चा निर्यात से कहीं ज्यादा होता है तो ऐसे मे वाणिज्य घाटा बढ़ता है। जिस कारण रुपये का मूल्य गिरता है।
- मुद्रास्फीति: यदि देश में मुद्रास्फीति ऊंचे स्तर पर है तो रुपये की क्रय शक्ति घटती है।
- वैश्विक घटनाएं: जैसे कि युद्ध, प्राकृतिक आपदाएं, या प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मंदी। आदि कई वैश्विक घटनाएं होती है तब भी रुपया का मूल्य घटता है
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रुपये के क्रेश का आम जनता पर प्रभाव पड़ता है
दोस्तों जब भी देश मे रुपये का मूल्य गिरता है तो इसका सीधा असर आम जनता की जिंदगी के हर मोड पर पड़ता है। जैसे
क. महंगाई बढ़ना
- रुपये की गिरावट का सबसे बड़ा असर जो है वह महंगाई पर होता है।
- आयात की जाने वाली वस्तुओं, जैसे तेल, गैस, दवा और इलेक्ट्रॉनिक्स, के दाम बढ़ जाते हैं। जिस कारण महागाई का सामना करना पड़ता है।
- पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने से परिवहन लागत बढ़ती है दोस्तों जब भी परिवहन लागत बड़ती है तो जाहीर सी बात है हर चीज महंगी हो जायगी।
ख. घरेलू बजट पर दबाव
- दोस्तों जब भी मार्केट मे महंगी वस्तुओं मिलती है तो परिवार के वजट पर भरी प्रवहाव पड़ता है जीस कारण परिवार का बजट बिगड़ जाता है।
- ऐसे मे बचत कम होती है और लोग घर परिवार चलाने के लिये कर्ज लेने को मजबूर हो जाते हैं।
ग. विदेशी शिक्षा और यात्रा पर असर
- दोस्तों जो लोग विदेश में पढ़ाई करने या घूमने जाते हैं तो उनके खर्च बढ़ जाते हैं।
- डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से विदेशी मुद्रा में भुगतान महंगा हो जाता है।
घ. निवेश और बचत पर प्रभाव
- रुपये की गिरावट से शेयर बाजार में अस्थिरता आती है।
- निवेशकों को नुकसान हो सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां विदेशी निवेश प्रमुख है।
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व्यवसायों पर प्रभाव
क. आयात पर निर्भर व्यवसाय
- जिन उद्योगों का कच्चा माल विदेश से आयात करना पड़ता है, उनकी लागत बढ़ जाती है। जिससे महागाई पर भरी प्रभाव पड़ता है।
- यह लागत उपभोक्ताओं पर डाली जाती है, जिससे चीजें महंगी हो जाती हैं। और उपभोक्ताओं को महगाई का सामना करने की एक मजबूरी मन जाती है।
ख. निर्यातकों को लाभ
- रुपये की गिरावट से निर्यातकों को फायदा हो जाता है। क्योंकि वे हमरे देश से जो वस्तु खरीद कर ले जाते है वे वस्तुएं विदेशी बाजारों में सस्ती हो जाती हैं। जिससे उनको एक बड़ा लाभ मिलता है
ग. लघु उद्योगों पर असर
- छोटे व्यवसाय, जो घरेलू बाजार पर निर्भर हैं, उनको महंगाई और कच्चे माल की बढ़ी हुई कीमतों का सामना करना पड़ता है।
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अर्थव्यवस्था पर समग्र प्रभाव
क. विदेशी ऋण बढ़ना
- रुपये के कमजोर होने से भारत का विदेशी ऋण बढ़ता है।
- इसका सीधा असर देश की आर्थिक स्थिरता पर पड़ता है।
ख. आर्थिक विकास की गति धीमी होना
- महंगाई और निवेश की कमी के कारण विकास दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिस कारण विकास की गति मे धीमी
ग. रोजगार पर असर
- रुपये के क्रेश से उद्योगों में लागत बढ़ती है, जिससे कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी करने लगती हैं।
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रुपये के क्रेश से बचाव के उपाय
क. विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत करना
- सरकार को विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए।
- निर्यात को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने की जरूरत है।
ख. वित्तीय नीतियों में सुधार
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए सख्त वित्तीय नीतियां अपनानी चाहिए।
- विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए व्यापारिक माहौल को बेहतर बनाना चाहिए।
ग. ऊर्जा के घरेलू स्रोतों पर ध्यान
- पेट्रोलियम उत्पादों की आयात पर निर्भरता कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाना चाहिए।
घ. लोगों में जागरूकता
- नागरिकों को विदेशी उत्पादों की जगह स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
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निष्कर्ष
रुपये के क्रेश का असर व्यापक और गहरा होता है। यह न केवल आम जनता की जेब पर भारी पड़ता है, बल्कि अर्थव्यवस्था के हर पहलू को प्रभावित करता है। हालांकि, यदि सही नीतियां अपनाई जाएं और आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के प्रयास किए जाएं, तो इस प्रभाव को कम किया जा सकता है। हमें यह समझना चाहिए कि रुपये की मजबूती केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर नागरिक का इसमें योगदान है। स्वदेशी उत्पादों का उपयोग, ऊर्जा की बचत, और आर्थिक जागरूकता से हम अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बना सकते हैं।
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